कार्कोटक कालसर्प योग :-
अष्टम भाव में राहु तथा द्वितीय भाव में केतु के मध्य सभी ग्रह आ जाए तो कार्कोटक नामक कालसर्प दोष होता है ।इस दोष के कारण जातक का भाग्योदय मुश्किल से हो पाता है । न नौकरी मिल पाती है न व्यवसाय ही जम पाता है ।पैत्रिक संपत्ति का लाभ भी नहीं मिल पाता ।
जातक प्रायः धोका देने वालो से घिरा रहता है ।दुर्घ्त ,आपात मृत्यु ,मधुमेह ,अंगभंग होना इसी सर्प दोष में फलित होता है ।इस दोष को भांग करने के लिए राजा गणेश की पूजा आराधना लाभप्रद होता है ।
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