वासुकि कालसर्प योग



वासुकि कालसर्प योग :-
राहु तृतीय व केतु नवम भाव में हो तथा अन्य ग्रह इनके मध्य हो तो जन्मकुंडली में वासुकि नामक कालसर्प दोष  बनता है ।इस दोष के कारण जातक के सभी प्रयाश असफल होते है स्त्री ,मित्र स्वजनो से अपयश और घोर शत्रुता का सामना करना पड़ता है ।जातक कभी शांत नहीं रह पाता ।बन्धु बान्धवो से धोखा खाना पड़ता है ।पद प्रतिष्ठा मान सम्मान में न्यूनता बानी रहती है ।शत्रु द्वारा विष दिए जाने का भी खतरा बना  है पिता के साथ सम्बन्ध मधुर नहीं रह पाते ।यात्राओ से लाभ नहीं मिल पाता  है अतः इस दोष की न्यूनता के लिए जातक को चाहिए की वो शिव उपासना करे ।कुल देवी देवताओ की आराधना करे ।सर्प को यथासंभव न मारे 

कोई टिप्पणी नहीं: