
आधुनिक युग में जहाँ विज्ञान ने इतनी तरक्की कर लिया है वहां ,किसी योगनुयोग की बात केवल मिथ्या भ्रम मानी जायेगी खाश कर "कालसर्प योग "कई लोग मुझसे प्रश्न करते है की यह योग हम अभी इन कुछ वर्षो से ही सुन रहे है ,वरना हमारे जमाने में इस योग के बारे में किसी से कुछ खाश नही सूना था ?और सच बताऊ तो सुनते भी कैसे ?पुराने जमाने में इतना पाप अधर्म भी तो नही था आज शारीरिक से कही ज्यादा मानसिक विसंगतिया ही रोग व्याधि ,दुर्घटनाओं ,घात-अपघात का कारण बनी हुई है ज्योतिषशास्त्र में "राहू "को सर्प का मुख तथा "केतु" को सर्प का पूंछ कहा गया है यह हमारे जीवन में मिथ्या भ्रम पैदा करके नाना प्रकार की विसंगतियों के रूप में ही तो फलित होता रहा है मिथ्या बातें ,और अहम् रूपी पूंछ से ही तो हम बंधे है इस संसार में भगवान् ने हर वस्तु वो घास ही क्यो न हो किसी न किसी कारणवश ही बनाया है "सर्प को देखते ही हमारे मन में भय उत्पन्न होने लगता है कुंडली मारे घात लगाने की प्रवृत्ति का भान होता है यही नही सभी जीवधारी की प्रवृतिया भी विभिन्न गुण-अवगुण के रूप में मानव जीवन में विद्यमान होती है इन्ही गुणावगुण लिए मानव जीवन अपने प्रारब्ध कर्मो के साथ वर्तमान को फलीभूत तो करता ही है साथ ही ज्ञान होने पर विसंगतियों से मुक्त हो कर राजसुख भोगते हुए अंतत मोक्ष को प्राप्त होता है
"कालसर्प योग "इसका तात्पर्य ही "कष्ट "है जीवन में कष्ट तब तक सहनीय है जब तक वो अस्तित्व को न डिगा सके लेकिन कष्ट जब असहनीय और असाध्य हो जाता है तो जीवन के मायने बदल जाते है ज्योतिष शास्त्र में राहू -केतु से बने इस योग के विभिन्न रूप बताये गए है जन्मांगचक्र में जब राहू और केतु के मध्य सभी ग्रह आ जाते है तो ऐसी ग्रह की स्थिति को "कालसर्प "योग कहाँ जाता है लेकिन यदि हम गौर करे तो इस योग का सीधा सम्बन्ध हमारी कुण्डलिनी शक्तियों से ही है कालसर्पयोग से ग्रसित जातक का जीवन प्रायः नाना प्रकार के विघ्नों से घिरा होता है कुस्वप्न ,आपात मृत्यु ,दुर्घटनाए ,लड़ाई -झगडे ,मारपीट ,हत्या ,आत्महत्या प्रायः इसी योग वाले जातको के साथ ज्यादा फलीभूत होते है समाज में अपमान ,परिजनों से विरोध ,मुकदमेबाजी ,आदि कई विषम स्थितिया यही नही सर्प दंश की घटनाएं प्रायः इसी योग के होने पर घटित होती है
काल सर्प योग के कारण :-कर्म प्रधान युग में भाग्य की अवहेलना नही की जा सकती पौराणिक मान्यताओ के अनुसार कर्म ही दंड को भी निर्मित करता है स्त्री ,माता -पिता ,बंधू बांधव ,गुरु ,देवताओ का श्राप भी इस योग का कारक माना गया है जिसके कारण व्यक्ति काल सर्प से ग्रसित हो जाता है
काल सर्प योग के प्रकार :-
१.अनंत काल सर्प योग २.कुलिक कालसर्पयोग ,३.वासुकी कालसर्पयोग ,४.शंखपाल कालसर्प योग५.पद्म कालसर्प योग ६ .महापद्म कालसर्प योग ७ .तक्षक कालसर्प योग ,८ .कर्कोटक कालसर्प योग ९ .शंखनाद काल सर्प योग१० .पातक काल सर्प योग ११.vishakt काल सर्प योग ,१२.shesh naag कालसर्प योग
1 टिप्पणी:
yadi ek do ek yaa do grah rahu ketu se bahar ho to kaya wo ishan kal sarp yog banta he yadi banta he to iske kaya niyaman he.
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